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मनुस्मृति में स्त्रियों के अधिकार एवं कर्तव्य

मनुस्मृति बहुत ही विवादित रहा है। कारण बहुत से हैं। समय समय पर तथाकथित धर्म के ज्ञाताओं ने इसमें अपने हिसाब से श्लोक जोड़ें हैं और उनका अनुवाद अपने हिसाब से किया है। वस्तुतः मूल मनुस्मृति से इतनी ज्यादा छेड़छाड़ की गई है कि वर्तमान में उपलब्ध मनुस्मृति को यदि आप यथावत पढ़ें और उसका भावार्थ न समझ कर सिर्फ शाब्दिक अर्थों के अनुसार व्याख्या करें तो आप इसके साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। मनुस्मृति में स्त्रियों के बारे में वर्णित श्लोकों का यदा कदा अप्रासंगिक उदाहरण देकर कुछ लोग बाकी लोगों को भ्रमित करते हैं जबकि वास्तविक स्थिति एकदम भिन्न है। जब भी हम किसी धार्मिक ग्रन्थ में दिए श्लोकों का भावार्थ करें तो उस काल खंड की सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था को ध्यान में रखना चाहिए। मनुस्मृति के निम्नलिखित कुछ श्लोक उदाहरण के तौर पर देखें और खुद ही निर्णय करें कि क्या मनुस्मृति स्त्री विरोधी है? स्त्री सम्मान के सम्बन्ध में मनुस्मृति के दिशा निर्देश - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। मनुस्मृति ३/५६ जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता न